Monday, August 22, 2011

दिवास्वप्न

"चलिए न पिताजी, आज कहीं घूमने चलें ।"

"हाँ, हाँ अनूप, चलो आज लोधी गार्डन चलते हैं । घूमने का घूमना हो जाएगा और साथ में पिकनिक अलग से ।"

"पिकनिक... घूमना... तुम कभी कुछ और भी सोचती हो शुभा ?"

"क्यों ? इसमें गलत भी क्या है ? बच्चों की छुट्टियां चल रहीं हैं । रोज़ घर में बैठा कर रखने का भी क्या औचित्य है ?"

"एक काम करो, तुम जाओ जहाँ जाना है । मैं तो चला सोने । कभी यह भी सोचा है कि जब भी हम घूमने जाते हैं कितना खर्च होता है ? सिर्फ़ पेट्रोल पर ही तीन-चार सौ रुपये लग जाते हैं । और तुम्हें सिर्फ़ घूमने के सपने आते हैं ।" कहते हुए अनूप अपने कमरे में चला गया । बच्चे थोड़ी देर तक रोते रहे इतने में शुभा उनके लिए गरमागरम पकौड़े निकाल लाई । कुछ तो करना था बच्चों का जी बहलाने के लिए ।

अनूप कुछ देर तक बड़बड़ाता रहा फिर टी०वी० चला कर चुपचाप उसके सामने बैठ गया ।

"... बच्चों का तो यह रोज़ का रोना है, शुभा । मेरा भी मन करता है कि ले जाऊँ घुमाने सबको... पर बढ़ती कीमतों के आगे अनमोल सपने धूल चाटते नज़र आते हैं ।"

"अरे अनूप, ऐसे मन ही मन क्यों कुढ़ते रहते हो ?" पीछे से तपन की आवाज़ सुन वह ज़रा हकबका गया था । उसे पता भी न चला था कि तपन कब उसके पीछे आ खड़ा हुआ था ।

"क्या करूँ यार तपन, समझ नहीं आता । पेट्रोल की बढ़ती कीमतों के आगे बच्चों के सपने... समझ नहीं आता, रोज़मर्रा की ज़रूरत की चीज़ें भी इतनी महँगी होतीं जा रहीं हैं कि सपनों को पूरा करना असंभव सा लगता है ।"

"ऐसे क्यों कहते हो अनूप ? मुझे देखो, मैं भी तो तुम्हारे साथ ही काम करता हूँ । पर हम महीने में चार-पाँच बार तो घूम ही आते हैं ।"

"वो कैसे ? कहीं से कारूँ का खज़ाना हाथ लग गया है क्या ?

"अरे खज़ाने-वज़ाने की क्या ज़रूरत है ? मैंने चाँदनी चौक के एक ताँगे वाले से मासिक अनुबंध कर लिया है । मैं फ़ोन करता हूँ और आधे घंटे में तांगा हाज़िर । बस फ़िर सारा दिन घूमते हैं । बच्चे भी खुश और हम भी । मौज-मस्ती की मौज-मस्ती और बचत की बचत ।"

"ताँगा ?"

"हैरान क्यों होते हो ? तुम्हें नहीं पता कि ताँगा क्या है ?"

"ताँगा तो पता है पर आज के युग में ताँगे का इस्तेमाल कौन करता है ?"

"तुम्हें नहीं पता क्या ? हमारे मोहल्ले में तो सब करते हैं ।"

"क्या ?"

"पेट्रोल की बढ़ती कीमत का यही उपाय है - ताँगा ।"

"हँ..."

"गाड़ी में भी तो घोड़े की शक्ति यानि हॉर्सपावर होती है । तो फिर हम असली घोड़े पर क्यों ना जाएँ ? और तुम्हें पता है कि यह पर्यावरण की समस्या का भी एक सुंदर समाधान है । अब पता चला कि यह राजसी वाहन क्यों कहलाता है ।"

"तुम भी ना..."

तभी पीछे से भोंपू की आवाज़ आई और तपन बोला, "चलो हम तो चलते हैं । हमारा ताँगा आ गया और मेरी मानो तो तुम भी किसी ताँगेवाले से मासिक अनुबंध कर लो ।"

"बॉय अंकल..." तपन के बच्चे खुशी-खुशी चिल्ला रहे थे । और तपन तो निकल लिया अपने परिवार के साथ...

...पापा, पापा... अब तो उठ जाओ... शाम होने को आई है और आप हो कि टी०वी के आगे सो रहे हो..."

"अनूप..."

"ह:..." अनूप हड़बड़ा कर उठ बैठा । न जाने कब टी०वी० देखते-देखते उसकी आँख लग गई थी ।

"टी०वी० पर विज्ञापन आ रहा था... फ़ीएट वाले पेट्रोल की गाड़ी की कीमत पर डीज़ल वाली कार दे रहे हैं ।" शुभा पीछे से बोल रही थी ।

"क्या ?"

"तुम तो टी०वी० के आगे सोते रहते हो और दुनिया का पता भी नहीं चलता कि कहाँ से कहाँ पहुँच गई ।"

"अभी तुम ने जो कहा..."

"हाँ भई सच है । मज़ाक नहीं कर रही ।"

""शुक्र है भगवान का... ताँगे वाले से मासिक अनुबंध करने से बच गए..."

शुभा और बच्चे हैरत से देख रहे थे । मगर अनूप को अब भी अपना दुःस्वप्न याद आ रहा था... शुक्र है सब सपने सच नहीं होते । भगवान भला करे उन फ़ीएट वालों का... जान बची तो लाखों पाये...













This is an entry for Fiat Freedom from Fuel Hikes contest organised by Indiblogger. If you like this post then please go to the indiblogger page and vote for it. You can also use the like link and promote it on facebook. Thanks :-)

4 comments:

Pradeep Aeri said...

I think it is twin benefit story, one promoting the diesel car over petrol the other not to stop Tonga in the congested lanes of Chandini Chowk
rather stop entry of 4 wheeler in those areas.
Both messages are strong for the good as anti pollution and the poor Tonga which has been stopped in those areas.

Ritu Bhanot said...

Thanks :-) I'm glad that you liked it.

Anonymous said...

nice story

devarshi said...

nice story