Wednesday, August 17, 2016

भनोत्

जो चिता पर हाथ जोड़े खड़ीं हैं वे माँ हैं मेरी ।

मैं ज़ोर-ज़ोर से रोते-रोते पुकार रहा हूँ – माँ, मत जाओ ।  माँ, रुक जाओ ।  पर माँ, मेरी माँ, जाने क्यों चली जा रहीं हैं ?

माँ जली जा रहीं हैं ।

मैं रो रहा हूँ ।

माँ जा रहीं हैं ।

माँ...

माँ...

माँ...


सन्नाटा ।

सब चुप ।

मैं रो रहा हूँ ।

तभी कोई आया ।  कौन ?  कौन हो तुम ?

श....

गोद को पालना बना झुला रहे हैं मुझे ।

मैं रो रहा हूँ ।

मैं रो रहा हूँ ।

माँ ।

मेरी माँ ।

कहाँ गयीं माँ ?

मैं तो अभी आया हूँ ?

क्या किया मैंने ?  माँ, क्यों क्रोधित हो रूठ गईं ?

माँ...

माँ...

माँ...


बाहों के झूले में झुलाया गया मुझे ।

क्यों आते ही रुलाया गया मुझे ?

क्या किया था मैंने मेरी माँ चलीं गयीं ?

मेरी माँ क्यों चलीं गयीं ?

भनोत् – भानु से उत्पन्न

माँ – भानु, जो जलतीं हैं ।

भानु तो नित जलता है ।

तू भनोत् ।

चल राजगुरू के पुत्र को अब राजा जी खुद ही पालेंगे ।

राजा...

राजा ?

यह क्या है ?

राजा...

रा∫∫∫ जा∫∫∫

हाँ, पिताश्री ने राजा जी को दे दिया मुझे ।  क्यों दे दिया मुझे ?

क्यों दे दिया मुझे ?

क्यों ?

माँ...

माँ...

माँ...

वर्ष बीते, और बीते ।  धीरे-धीरे समझाते हैं ।

“पुत्र, तुम प्रमाण हो ।”

“प्र मा ण... प्र मा ण ?”

“हाँ, प्रमाण ।”

“तुम प्रमाण हो... हमारे शरणागत् की रक्षा करने के प्रयास का प्रमाण ।”

“प्र मा ण...”

“हाँ भनोत्, प्रमाण ।”

मैं टकटकी लगाए देख रहा था – भनोत्, प्र मा ण ।

फिर देर हुई । समय बीता । प्रश्न मन में उमड़ते रहे ।  मन उत्तर को तरसता रहा ।

प्रमाण... शरणागत्... प्रण... भनोत् ।

“हाँ पुत्र, एक स्त्री आयी थी हमारे राज्य में... शरणागत् बन, शरण माँगती ।”

“मैं राजा हूँ, पुत्र, और तुम्हारे पिता राजगुरु ।  शरणागत् की रक्षा करना धर्म है हमारा ।  और स्त्री तो स्वयं शक्ति है ।”

मैं मुस्काया... स्त्री, शक्ति ।  माँ, मेरी शक्ति ।  माँ शक्ति ।

फिर अश्रुपूरित हो गए नयन ।

माँ चली जा रहीं हैं ।

माँ जली जा रहीं हैं ।

माँ शक्ति चली गईं ।

मेरी माँ चली गईं ।

मेरे आँसू देखे न गए उनसे पिताश्री भी रो पड़े ।

रा   जा    जी भी रो पड़े ।

समय बीता पर आँसू बहते रहे ।  बहते आँसू सबसे कहते रहे – 

माँ, मेरी माँ ।

माँ चली जा रहीं हैं ।

माँ जली जा रहीं हैं ।

किसी ने रोका भी नहीं था उन्हें ।  क्यों नहीं रोका था उन्हें ?

माँ मेरी चलतीं रहीं ।

माँ मेरी जलती रहीं ।

वर्ष ।

और वर्ष ।

कुछ और वर्ष ।

हृदय मे अब भी समृतियां थीं ।

आँखों में अश्रु भी थे ।

कहते हैं आज मुझे ले जा रहे हैं ।  पिता जी और रा  जा  जी मुझे ले जा रहे हैं ।

मंदिर ।

मंदिर ।

“पुत्र, तेरी माँ का है ।  यह मंदिर तेरी माँ का है ।”

मैं खुश हूँ ।

माँ, माँ, माँ   ...

यह गोद है, गोद है यह मेरी माँ की ।  माँ की गोद मिल गई मुझे ।  मैं प्रसन्न हो खेलने लगा ।  माँ की गोद में खेलने लगा ।

माँ...

माँ...

माँ...

मेरी माँ ।

लौट आयीं मेरी माँ ।  हम खेल रहे हैं ।

पिता श्री मुस्कुरा रहे हैं ।


रा   जा   जी भी मुस्कुरा रहे हैं ।




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